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निंदा का स्वरूप ही हीनता और कमजोरी का होता है

वर्तमान समाज में जब निंदा की बात आती है तो दो वर्ग सामने आते हैं, पहला मिशनरी निंदक और दूसरा गैर मिशनरी निंदक !!
मिशनरी निंदक का अर्थ है, जिसके जीवन का लक्ष्य ही निंदा करना हो अर्थात, जैसे कोई व्यक्ति अपनी नौकरी करता है, ड्यूटी करता है, उसी प्रकार से ऐसे व्यक्तियों का राजधर्म ही निंदा करना होता है। निंदा का उद्गम हीनभावना और कमजोरी से होता है! व्यक्ति अपने दोषों और कमजोरियों पर पर्दा डालने के लिए दूसरे व्यक्ति की निंदा करता है। किसी लेखक का प्रसिद्ध कथन है कि जैसे-जैसे व्यक्ति की प्रगति होती है, वैसे-वैसे उसके आस-पास के लोगों में निंदा का भाव बढ़ता है! यदि व्यक्ति कम सफल है तो निंदा कम होगी, और ज्यादा सफल है तो ज्यादा होगी।
और सच में, निंदा करने वालों के लिए सफलता एक खंजर जैसी होती है। जो खुद उन्हें नहीं मिलता, तो वे दूसरों के हाथ से छीनने की कोशिश करते हैं। वे उस अंधेरी सुरंग के समान हैं, जो खुद रोशनी पैदा नहीं कर सकती, पर जो भी रोशनी में जाए, उसे धुंधला करने की कोशिश करती है।
हरिशंकर परसाई जी ने ऐसे लोगों का इलाज ये बताया है कि आप कुछ न करिए, बस केवल अपनी प्रगति पर ध्यान दीजिए। जैसे-जैसे आप सफल होंगे, निंदकों की रात की नींदें उड़ जाएंगी!!
यह बिल्कुल वैसा है जैसे किसी खेत में खरपतवार उग आए अगर किसान उन्हें एक-एक कर उखाड़ने लगेगा तो फसल का समय निकल जाएगा, पर अगर किसान अपनी फसल को इतना मजबूत कर दे कि खरपतवार खुद ब खुद दब जाए, तो फसल भी बचेगी और मेहनत भी सही दिशा में लगेगी।
मिशनरी निंदकों में भी अनेक वैरायटी आती हैं। जैसे गुटबाजी, फोनबाजी इत्यादि। यानी कुछ निंदक ऐसे हैं जिनका समय नियत रहता है कि इतने बजे फलां जगह पर पहुँचना है और पहुँचकर फलां-फलां व्यक्ति की निंदा करनी है!! कुछ लोग निंदा रूपी कच्चा माल लेकर पहुँचते हैं, जिसे फिर उस गुट के अन्य लोग बढ़ा-चढ़ाकर पक्का करके पूरे समाज में सप्लाई करते हैं!!
यह निंदा-उद्योग बिलकुल एक फैक्ट्री की तरह चलता है जहाँ:अफवाह मशीन’ 24 घंटे चालू रहती है, और उसका प्रोडक्शन रेट कभी कम नहीं होता। फर्क बस इतना है कि यहाँ मजदूरी में तनख्वाह नहीं, बल्कि अंदरूनी संतोष और अहंकार की तृप्ति मिलती है।
बात होगी कि फलाने की बकरी मर गई, तो ऐसे लोग बताते हैं कि फलाने की बकरी को धिमकाने ने मार डाला!!
यानी घटना चाहे कितनी भी मामूली हो, उसमें मसाले ऐसे डाले जाते हैं कि सुनने वाला भी कह उठे ‘अरे वाह, ये तो बड़ी खबर है!’ ये लोग अफवाह को इतना सजाकर पेश करते हैं कि सच भी झूठ लगने लगे और झूठ भी सच।
अब बात आती है गैर मिशनरी निंदकों की!
ये निंदक ऐसे होते हैं जो चलते-फिरते, उठते-बैठते केवल निंदा ही करते हैं। ये सिर्फ दुनिया को यह झूठ बताते हैं कि उनका लक्ष्य निंदा या बुराई नहीं है। परंतु चाचा की असली भौजाई ऐसे ही लोग होते हैं, जो निंदा की इस नौकरी का भली-भांति पालन करते हैं!
इनका जीवन सिद्धांत यही होता है ‘अगर बोलना है तो कुछ तीखा बोलो, वरना चुप रहो।’ ऐसे लोग बिना निंदा के ऐसे असहज महसूस करते हैं जैसे कोई मोबाइल बिना नेटवर्क के।
ऐसे लोग ‘अ’ व्यक्ति से बात सुनते हैं, फिर जाकर ‘ब’ व्यक्ति के सामने जाकर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं!
और इस प्रक्रिया में शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं, भाव बदल जाते हैं, और अंत में एक नई कहानी तैयार हो जाती है जिसका सच से कोई लेना-देना नहीं, लेकिन सुनने में मज़ेदार जरूर लगता है। यही वह ज़हर है, जो रिश्तों के पेड़ को अंदर से खोखला कर देता है।
इनकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें अपना दोष कभी दिखाई नहीं देता, लेकिन सामने वाले की जरा सी गलती पर ये ऐसे टूट पड़ते हैं मानो वह आदमी गलती नहीं, कोई राष्ट्रीय अपराध कर बैठा हो।
इनका दिमाग एक तरह से ष्सीसीटीवी कैमरेष् जैसा होता हैकृबस फर्क यह कि ये सिर्फ गलत एंगल से ही फुटेज रिकॉर्ड करते हैं। अच्छाई देखना इनके बस की बात नहीं, क्योंकि अच्छाई देखने के लिए मन में साफ़ नज़र चाहिए और इनकी आंखों पर जलन की धूल जमी होती है।
कुछ निंदक तो इतने अनुभवी होते हैं कि आपके कल के काम पर आज ही टिप्पणी कर देंगे मानो इनके पास कोई टाइम मशीन हो। और अगर निंदा का कोई ताज़ा विषय न मिले तो ये दिमाग में कहानी गढ़कर उसी को सच की शक्ल देकर समाज में फैला देंगे, ताकि उनका ‘दैनिक टारगेट’ पूरा हो सके।
इनके लिए किसी की तारीफ करना उतना ही कठिन है जितना नमक के खेत में चीनी उगाना।
और सबसे मजेदार बात ये कि अगर आप सफल हो जाएं, तो कहेंगे ‘किस्मत का खेल है!’
अगर असफल हो जाएं, तो बोलेंगे ‘देखा, हमने पहले ही कहा था!’
यानि चाहे जीत हो या हार, इनकी ज़ुबान पर ताला कभी नहीं लगता।
सच में, निंदा करना इनके लिए सिर्फ आदत नहीं, बल्कि एक ‘मनोवैज्ञानिक नशा’ है।
कुछ लोग सुबह की चाय से तरोताज़ा होते हैं, ये लोग सुबह की निंदा से।
और ऐसे लोगों से बचने का एक ही तरीका है इनके शब्दों को उतनी ही गंभीरता से लो जितनी किसी मौसम विशेषज्ञ की बिना बरसात वाली बारिश की भविष्यवाणी को।
क्योंकि अगर आप हर ताने, हर अफवाह और हर झूठ पर प्रतिक्रिया देंगे तो आपकी ऊर्जा वहीं खत्म हो जाएगी, जो आपके सपनों को पूरा करने में लगनी चाहिए।
और याद रखिए जैसे पेड़ पर पत्थर मारने से फल गिरते हैं, वैसे ही आपकी सफलता पर निंदकों के ताने बरसेंगे। जितना ऊंचा बढ़ोगे, उतना ज्यादा पत्थर खाओगे, और ये पत्थर ही सबूत होंगे कि आप सच में ऊंचाई पर पहुंच चुके हो।

वैभव बाथम
बनीपारा जिनई, कानपुर देहात।

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