पिछले दिनों एक रील प्रसारित हो रही थी। एक छोटा सा बच्चा कांवड़ लेकर जा रहा है और लोग भी बड़े जोश में जयकारे लगा रहे हैं। इसी दौरान एक खबर भी पढ़ी कि यूपी में 10,000 स्कूल बंद होने वाले हैं। मेरे लिए यह फर्क करना मुश्किल हो गया कि कांवड़ उठाता बच्चा सही है या स्कूलों का बंद हो जाना? यह बड़ा दुर्भाग्य है कि हमारे देश में लोग बच्चों को पढ़ाने से ज्यादा धार्मिक कर्मकांडों को महत्व देते हैं। मैंने कई खबरें पड़ी है जिनमें धार्मिक उन्मादी मारपीट, तोड़फोड़ करते हुए दिखाई देते हैं। क्या यही भविष्य है उनका? मेरा आशय यह बिल्कुल नहीं है कि आस्था ना रखी जाये या धार्मिक कर्मकांडों को महत्व ना दिया जाये लेकिन अंधविश्वास के सागर में गोते लगाकर धर्म के ठेकेदार बनकर अराजकता मत फैलाइये।
यह भी देखने में आ रहा है कि शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों की रुचि कम होती जा रही है और उससे भी बुरी स्थिति यह है कि सरकारी स्कूलों की स्थिति बहुत दयनीय है। स्कूलों में छत नहीं है, बिजली, पानी, कुर्सी बेंच, पंखे, शौचालयों की सुविधा नहीं है। स्कूल जर्जर अवस्था में है और शिक्षक अनुपस्थित रहते हैं, जिसकी वजह से छात्र भी अनुपस्थित रहते हैं और उनकी पढ़ाई में रुचि नहीं रहती है। इससे इतर प्राइवेट स्कूलों की फीस इतनी ज्यादा होती है कि गरीब बच्चे उन स्कूलों में पढ़ने के लिए सोच भी नहीं सकते और आजकल के स्कूल, स्कूल न होकर होटल जैसे हो गए हैं। शिक्षकों के एक जैसे कपड़े, होटल जैसी सुविधा। गोया, बच्चे स्कूल ना जाकर होटल में जा रहे हों। सबसे ज्यादा खराब स्थिति गरीब बच्चों की है। यूपी में स्कूलों के विलय से अभिभावक नाराज है उनका कहना है कि गांव का स्कूल बंद कर रहे हैं अब मेरी बेटी को पढ़ने के लिए 2 किलोमीटर दूर जाना पड़ेगा। वहां तक जाने के लिए रास्ता भी नहीं है सिर्फ पगडंडी है 5-6 साल के बच्चे कैसे जाएंगे पढ़ने। यूपी में 10,000 प्राथमिक स्कूल बंद होंगे! इसलिए क्योंकि इन स्कूलों में बेहद कम बच्चे पढ़ने आ रहे हैं। आखिर क्यों? क्यों शिक्षा मंत्रालय शिक्षा के लिए जागरूकता और सही माहौल नहीं बना पा रहा है? लोगों में शिक्षा के प्रति उदासीनता को खत्म क्यों नहीं कर पा रहा है? दूसरी बात यह है कि जो बच्चे पढ़ने आ रहे हैं उनको बेसिक सुविधायें क्यों नहीं उपलब्ध है? वह क्यों जर्जर स्कूलों में पढ़ाई करने को मजबूर हैं?
स्कूलों के बंद होने से रोजगार भी खत्म हो जाएंगे। पिछले 10 वर्षों में 89,441 स्कूल बंद हो चुके हैं। सरकारी स्कूलों की संख्या घटकर 10,17,660 रह गई है और निजी स्कूलों की संख्या में 42,944 की वृद्धि हुई है। जहां हम शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं उनकी ऐसी स्थिति देखकर यह प्रश्न उठता है कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है? निजी स्कूल स्कूल कम व्यावसायिक केंद्र ज्यादा लगते हैं, जहां क्लासरूम में एसी से लेकर खाने के मेन्यू तक तय रहते हैं। ट्यूशन क्लासेस भी स्कूल में ही हो जाती है। इस महंगी शिक्षा प्रणाली को अपनाने के लिए लोग मजबूर है। उनका बजट डगमगाता है लेकिन वह यह बोझ बच्चों के सुंदर भविष्य के लिए उठाने को तैयार हैं।
इतने सरकारी विद्यालयों का बंद हो जाना शिक्षा क्षेत्र में सरकार की नाकामी दर्शाता है। उसकी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। अब यह जरूरी हो जाता है कि सरकार शैक्षणिक ढांचे में बदलाव लाए। सरकारी स्कूलों में केवल 43.5% में ही शिक्षा के लिए कंप्यूटर है, वहीं निजी स्कूलों में यह आंकड़ा 70.9% है। 1.52 लाख स्कूलों में बिजली की सुविधा नहीं है। 67,000 स्कूलों में कार्यशील शौचालय नहीं है, साफ सफाई नहीं है। केवल 33.2% सरकारी स्कूलों में ही विकलांगों के लिए उपयुक्त शौचालय है जिनमें से अधिकांश कार्यशील नहीं है। शिक्षकों की कमी और अप्रशिक्षित शिक्षक स्कूलों के विकास में रोड़ा बने हुए हैं। यह जरूरी हो जाता है कि प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में सुधार किया जाए। सबसे अहम बात यह है कि शिक्षा की पहुंच सभी तक होनी चाहिए, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर एक बच्चे को उचित शिक्षा प्राप्त हो। फिर चाहे, उसकी सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो। ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल शिक्षा की व्यवस्था की जाए। यदि इतना भी सुधार हो गया तो शिक्षा की दिशा में आमूलचूल परिवर्तन आएगा। यह जरूरी है कि पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए ना की स्कूल बंद किया जाए।
प्रियंका वरमा माहेश्वरी
गुजरात