
कविता पंत: नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार सी पी राधाकृष्णन और विपक्ष के इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी के बीच सीधा मुकाबला होगा। दिलचस्प यह है कि दोनों उम्मीदवार दक्षिण भारत से हैं। मतदान 9 सितम्बर को होगा और परिणाम भी उसी दिन घोषित किए जाएंगे। राजग के उम्मीदवार सी पी राधाकृष्णन तमिलनाडु से हैं जबकि सुदर्शन रेड्डी तेलंगाना से हैं। विपक्ष इस चुनाव को वैचारिक लड़ाई के रूप में प्रचारित कर रहा है लेकिन संख्या बल राजग के पक्ष में है, अर्थात राधाकृष्णन का चुना जाना लगभग तय है। गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति का पद जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद खाली हुआ है। धनखड़ ने संसद के मानसून सत्र के पहले दिन 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया था। चुनाव के लिए रिटर्निंग आफिसर राज्यसभा के महासचिव पी सी मोदी ने बताया कि उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए निर्वाचन मंडल में दोनों सदनों के सदस्य शामिल हैं। मतदान की व्यवस्था संसद भवन में की गई है। मतों की गिनती उसी दिन शाम छह बजे शुरू होगी और परिणाम तुरंत घोषित कर दिये जायेंगे। सी पी राधाकृष्णन भारतीय जनता पार्टी के अनुभवी नेता हैं और वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं जबकि सुदर्शन रेड्डी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हैं। सी पी राधाकृष्णन ने लोकसभा में दो बार कोयंबटूर का प्रतिनिधित्व किया है जबकि सुदर्शन रेड्डी ने शीर्ष अदालत उच्चतम न्यायालय में रहते हुये कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाये जिसमें काले धन के मामलों की जांच में सरकार की लापरवाही की आलोचना भी शामिल है। उन्होंने नक्सलवाद से जुड़े सलवा जुडूम का फैसला भी सुनाया था जिसे लेकर शुरू हुई बहस फिर से चर्चा के घेरे में आ गई है। सीपी राधाकृष्णन इस समय महाराष्ट्र के 24वें राज्यपाल हैं। उन्होंने यह पद 31 जुलाई 2024 को संभाला था। इससे पहले वह फरवरी 2023 से जुलाई 2024 तक झारखंड के राज्यपाल रहे। मार्च से जुलाई 2024 के बीच उन्होंने तेलंगाना के राज्यपाल और पुडुचेरी के उपराज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाला। वह भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी के सलवा जुडूम के फैसले को लेकर उन पर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल में नक्सलवाद का ‘समर्थन’ करने का आरोप लगाया है। दरअसल सलवा जुडूम छत्तीसगढ़ में 2005 में शुरू किया गया एक नक्सल विरोधी अभियान था। इसका उद्देश्य बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलवाद का मुकाबला करना और उन्हें रोकना था। इस अभियान के तहत स्थानीय आदिवासियों को संगठित कर उन्हें हथियार और प्रशिक्षण देकर नक्सलियों के खिलाफ खड़ा किया गया। छत्तीसगढ़ सरकार और केन्द्र के समर्थन से शुरू हुए इस आंदोलन का नेतृत्व स्थानीय आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा ने किया था। सलवा जुडूम का अर्थ है ‘शांति मार्च’ और यह अभियान शुरू में नक्सलियों के खिलाफ प्रभावी साबित हुआ। लेकिन दुर्भाग्य से इसकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठे। मानवाधिकार संगठनों और वामपंथी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि इस अभियान ने आदिवासियों को जबरन विस्थापित किया, उनके अधिकारों का हनन किया और हिंसा को बढ़ावा दिया। सलवा जुडूम के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई और जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी की बेंच ने सलवा जुडूम को असंवैधानिक और गैरकानूनी करार दिया। अमित शाह ने सुदर्शन रेड्डी के सलवा जुडूम पर फैसले को नक्सल विरोधी लड़ाई को कमजोर करने वाला बताया है। भाजपा का आरोप है कि सुदर्शन रेड्डी की विचारधारा वामपंथी है और वामपंथी दलों के दबाव में कांग्रेस ने एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। इतना ही नहीं भाजपा का दावा है कि अगर सलवा जुडूम पर रोक नहीं लगती, तो नक्सलवाद 2020 तक खत्म हो गया होता। सुदर्शन रेड्डी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि सलवा जुडूम पर फैसला उनका व्यक्तिगत नहीं था बल्कि उच्चतम न्यायालय का था और वह हमेशा संविधान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं और नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप निराधार है। दोनों उम्मीदवारों को लेकर पक्ष विपक्ष के बीच वैचारिक बहस होना लाजिमी है लेकिन बेहतर यही होता कि दोंनो पक्षों के बीच इस सर्वोच्च पद के लिये सर्वानुमति बन जाती तो लोकतंत्र को मजबूती मिलती। संसद के दोनों सदनों की संयुक्त क्षमता 788 है जिसमें एक लोकसभा और पांच राज्यसभा की सीटें रिक्त हैं। अर्थात दोनों सदनों की प्रभावी संख्या 782 है। राजग की स्थिति फिलहाल अच्छी है। वर्तमान में लोकसभा में 542 सदस्य हैं जिनमें 293 राजग के हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव में बहुमत के लिए 392 सांसदों की जरूरत होगी। सत्तारूढ राजग के पक्ष में 427 सांसदों का समर्थन बताया जा रहा है। आंकडे सी पी राधाकृष्णन के पक्ष में है लेकिन नतीजे आने तक दोनों पक्ष अपने उम्मीदवार के पक्ष में समर्थन जुटाने कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।