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1984 के दंगों के दौरान सिखों की मदद के लिए स्वयंसेवकों की भूमिका प्रशंसनीय: प्रधानमंत्री

नई दिल्ली | कविता पंत
प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने बुधवार को नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह को संबोधित किया और 1984 के दंगों के दौरान सिखों की मदद के लिए स्वयंसेवकों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “1984 में सिख नरसंहार के दौरान, बहुत से सिख परिवारों ने आरएसएस स्वयंसेवकों (स्वयंसेवकों या सदस्यों) के घरों में शरण ली थी। स्वयंसेवकों का यही स्वभाव है।”
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जब नागपुर आए तो वे आरएसएस की सादगी और समर्पण से बहुत प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा, “पंजाब में आई बाढ़ और हिमाचल, उत्तराखंड व वायनाड में आई त्रासदियों के दौरान, स्वयंसेवक सबसे पहले पहुँचे और सहायता प्रदान की। दुनिया ने कोविड महामारी के दौरान आरएसएस के साहस और सेवाभाव को देखा।”
1984 के सिख विरोधी दंगे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या के बाद भड़के थे। दंगों में हज़ारों सिख मारे गए, जिनमें सबसे ज़्यादा प्रभावित शहर दिल्ली और उसके बाद कानपुर था। भीड़ ने दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में क्रूर हमले, हत्याएँ और आगजनी की।
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर एक विशेष डाक टिकट और एक स्मारक सिक्का भी जारी किया। उन्होंने कहा, “100 रुपये के इस सिक्के पर एक तरफ राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न है और दूसरी तरफ वरद मुद्रा में सिंह के साथ भारत माता की भव्य छवि है, और स्वयंसेवकों को भक्ति और समर्पण भाव से उनके समक्ष नतमस्तक दिखाया गया है।”
प्रधानमंत्री मोदी ने संघ की 100 वर्षों की यात्रा को त्याग, निःस्वार्थ सेवा और राष्ट्र निर्माण की अद्भुत मिसाल बताया। उन्होंने कहा कि अपने गठन के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र निर्माण का विराट उद्देश्य लेकर चल रहा है। संघ ने व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का रास्ता चुना। इस रास्ते पर निरंतर चलने के लिए नित्य और नियमित चलने वाली शाखा के रूप में कार्य पद्धति को चुना।
उन्होंने कहा कि आर एस एस के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जानते थे कि हमारा राष्ट्र तभी सशक्त होगा, जब हर व्यक्ति के भीतर राष्ट्र के प्रति दायित्व का बोध जागृत होगा। हमारा राष्ट्र तभी ऊंचा उठेगा, जब भारत का हर नागरिक राष्ट्र के लिए जीना सीखेगा। इसलिए वे व्यक्ति निर्माण में निरंतर जुड़े रहे। उनका तरीका अलग था। हमने बार-बार सुना है कि डॉ. हेडगेवार जी कहते थे कि जैसा है, वैसा लेना है। जैसा चाहिए, वैसा बनाना है।
मोदी ने कहा, “लोग संग्रह का उनका यह तरीका अगर समझना है तो हम कुम्हार को याद करते हैं। जैसे कुम्हार ईंट पकाता है तो जमीन की सामान्य-सी मिट्टी से शुरू करता है। वह मिट्टी लाता है और उस पर मेहनत करता है। उसे आकार देकर तपाता है। खुद भी तपता है और मिट्टी को भी तपाता है। फिर उन ईंटों को इकट्ठा करके भव्य इमारत बनाता है। ऐसे ही डॉ. हेडगेवार बहुत ही सामान्य लोगों को चुनते थे। फिर उन्हें सिखाते थे, विजन देते थे और उन्हें गढ़ते थे। इस तरह वे देश के लिए समर्पित स्वयंसेवक तैयार करते थे।”
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संघ के बारे में कहा जाता है कि इसमें सामान्य लोग मिलकर असामान्य अभूतपूर्व कार्य करते हैं। व्यक्ति निर्माण की यह सुंदर प्रक्रिया आज भी हम संघ की शाखाओं में देखते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वयंसेवकों के लिए त्याग और समर्पण सहज हो जाता है। श्रेय के लिए प्रतिस्पर्धा की भावना समाप्त हो जाती है। उन्हें सामूहिक निर्णय और सामूहिक कार्य का संस्कार मिला है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र निर्माण का महान उद्देश्य, व्यक्ति निर्माण का स्पष्ट पथ और शाखा जैसी सरल व जीवंत कार्य पद्धति यही संघ की 100 वर्ष की यात्रा का आधार बनी है।

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